Chapter 2
शख्स इधर उधर भागा
कभी यहां छुपा कभी वहां
आखिर उसका कसूर क्या है
उसको समझ नहीं आ रहा है
मैंने तो बस लोगों का भला चाहा
लेकिन इनकी समझ में आए तब ना
मैंने तो मंत्रियो को भी लिखा
लेकिन किसी ने जवाब तक नहीं दिया
हां एक चिठ्ठी आई थी मंत्रालय से
इन्होंने अपना धन्यवाद प्रकट किया था
हां इतना तो जरूर
लेकिन क्या ये काफी है
बस हो गया इतना ही
बस हो गया देश का कल्याण
मंत्री जी एक बार मिलने को तो बुला लेते
फिर शख्स निकाल लेता अपनी भड़ास
हम चीन से भी तो सहायता ले सकते हैं
इसमें कोई बुराई नहीं
हां इसमें कोई बुराई नहीं
हमारे भारत देश के कितने लोग सड़कों पर रह रहे हैं
कितने झुग्गी झोपड़ी में रह रहे हैं
क्या हमें नजर नहीं आ रहा
लेकिन मंत्री जी को फुरसत कहां
कितने काम हैं उन्हें
शख्स ने एक गाना भी लिखा था इस पर
गांव के गन्ने के खेतों में छिपे हुए
शख्स को वो गाना याद आने लगा: