कभी कभी ऐसा होता है कि जितने पैसे बचाओ,
उतना सुख है.
ये बड़ी ही उल्टी बात लगती है लेकिन हकीकत भी कई बार यही है कम से कम अधिकांश परिवारों में.
संसार जूझ रहा है गरीबी से और बेकार के दिल बहलाने वाले खर्चों से.
और इन दोनों ही बातों का संतुलन या मेल बैठाना मुश्किल है कि जरूरत की चीज ली जाए या शौक पूरा किया जाए.
तो ऐसे में आप क्या करेंगे ?
मेरी राय में तो शौक तो चलते ही रहते हैं परन्तु सर्वप्रथम जो अति आवश्यक जरूरतें हैं, वो पहले.
और हां ये भी देखलें जरूर कि बड़े बुजुर्ग को क्या चाहिए.
इसके बाद आपका अपना नंबर….