शांती या प्रकृति ध्यान में दो प्रमुख बातें हैं
थोड़ी सी अवधि या समय के लिए शांती या चुप्पी
बस चुप रहना है एक
और दूसरा कहीं खुले वातावरण में बैठना है
अकेले में, एकांत में।
खुले वातावरण में ही क्यों
दरअसल एक सीमित दायरे में हमारा दिल और दिमाग भी सीमित हो जाता है और हम बहुत आगे की सोच कई बार नहीं रख पाते हैं
इसीलिए अनुरोध है जनाब कि थोड़ा सा बाहर निकलिए और फिर देखिए
छोटी छोटी बातों के बादल तो अपने आप ही छट जाएंगे खुदबखुद।
ज्यादा से ज्यादा एक घंटा ही बिताना है
इससे ज्यादा कभी नहीं
शांती, एकांत, और पर्यावरण के साथ बैठो तो सही
एक चानस तो दो
अगर आपने दो तीन दिन लगातार ये कर लिया
तो प्रकृति ध्यान अपने आप ही समाने लगेगा
सब कुछ बदला बदला सा नजर आने लगेगा।